सोमवार, 13 सितंबर 2010

बहुत कुछ दिया है, तुमने प्रभु


बहुत कुछ दिया तुमने प्रभु
     कैसे करूँ मैं शुक्रिया तुम्हारा।
जो भी दिया तूने दिया
     मेरा नहीं सब कुछ तुम्हारा।

भवसागर में था मैं उलझा
      तेरी शरण में आकर सुलझा
तेरी कृपा से पाया किनारा।
     कैसे करूँ मैं शुक्रिया तुम्हारा।

तुझसे ही प्रभु शाम-सवेरे
        जानूँ कितने रूप हैं तेरे
देखूँ जिधर उधर तेरा नज़ारा।
     कैसे करूँ मैं शुक्रिया तुम्हारा।

अपना तुझको जिसने भी बनाया
 उसका जीवन तुमने ही खिलाया
हो गये उसके जिसने पुकारा।
     कैसे करूँ मैं शुक्रिया तुम्हारा।

भक्ति में अपनी रमाये रखना
      कृपा की द्रष्टि बनाये रखना 
तेरा ही बस मुझको सहारा।
     कैसे करूँ मैं शुक्रिया तुम्हारा।