शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010

आखिर मोहब्बत को क्यों समझेगा जमाना


आखिर मोहब्बत को क्यों समझेगा जमाना।
           न समझना जमाने का रहा अन्दाज पुराना।

मोहब्बत करने वाले मिटे मोहब्बत न मिटी
          मुश्किल है दुनियां से मोहब्बत को मिटाना।

शायद फले-फूले मोहब्बत चोरी-चोरी से ही
         मोहब्बत गर करोगे तो प्यारे पड़ेगा छुपाना।

मोहब्बत की दुश्मन है ये दुनियां सदियों से
         नहीं माना वो जो हुआ मोहब्बत में दीवाना।