सोमवार, 13 सितंबर 2010

बहुत कुछ दिया है, तुमने प्रभु


बहुत कुछ दिया तुमने प्रभु
     कैसे करूँ मैं शुक्रिया तुम्हारा।
जो भी दिया तूने दिया
     मेरा नहीं सब कुछ तुम्हारा।

भवसागर में था मैं उलझा
      तेरी शरण में आकर सुलझा
तेरी कृपा से पाया किनारा।
     कैसे करूँ मैं शुक्रिया तुम्हारा।

तुझसे ही प्रभु शाम-सवेरे
        जानूँ कितने रूप हैं तेरे
देखूँ जिधर उधर तेरा नज़ारा।
     कैसे करूँ मैं शुक्रिया तुम्हारा।

अपना तुझको जिसने भी बनाया
 उसका जीवन तुमने ही खिलाया
हो गये उसके जिसने पुकारा।
     कैसे करूँ मैं शुक्रिया तुम्हारा।

भक्ति में अपनी रमाये रखना
      कृपा की द्रष्टि बनाये रखना 
तेरा ही बस मुझको सहारा।
     कैसे करूँ मैं शुक्रिया तुम्हारा।



7 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी पंक्तिया लिखी है आपने ....

    मुस्कुराना चाहते है तो यहाँ आये :-
    (क्या आपने भी कभी ऐसा प्रेमपत्र लिखा है ..)
    (क्या आप के कंप्यूटर में भी ये खराबी है .... )
    http://thodamuskurakardekho.blogspot.com

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  2. प्रभु की शरण में ही सुकून मिलता है ।
    अच्छी भावपूर्ण रचना प्रेम जी ।

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  3. बहुत कुछ दिया है, तुमने प्रभु
    कैसे करुँ मैं, शुक्रिया तुम्हारा।
    जो कुछ भी है, पास में मेरे
    वो है प्रभु , सब कुछ तुम्हारा ...

    सुंदसर रचना है .... सुंदर प्रभु वंदन ....

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  4. सही कहा है....सब कुछ उस प्रभु का ही तो है...हम तो बस यूँ ही मेरा-मेरा कहते रहते हैं !!!

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  5. तुझसे ही प्रभु, शाम-सवेरे
    जानूँ न कितने, रूप हैं तेरे
    देखूँ जिधर उधर, तेरा नज़ारा.....
    Yes its correct.....if you want to see something more about Nature ..visit here....Aseem Asman...the sky is limitless.....

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