मंगलवार, 3 अगस्त 2010

उनके आने से पहले खिल गयी फूलों से डालियाँ


उनके आने से पहले ही खिल गयी फूलों से डालियाँ।
जैसे डालियों ने पहन रखी हों अपने कानों में बालियाँ॥

आसमां पे चढ़ के बोलने लगी है आज शुहरत उनकी
जहाँ जाते वहाँ ही स्वागत में बजने लगतीं हैं तालियाँ।

बेपनाह मुहब्बत करते हैं यारो उनसे ये सारे जहाँ वाले
देखके हुस्नवालों के चेहरों पे खिलने लगती हैं लालियाँ।

हर कोई दौड़ पड़ता है उनको अपना प्यार जताने को
जिस तरह घेर लेती हों किसी को ससुराल में सालियाँ।

बदनामी में भी उनको अपना नाम होता हुआ सा दिखे
बुरा ही नहीं लगता कभी अगर देता कोई भी गालियाँ।

हुस्न भी हो रहा बेकाबू आज कल बाहर झाँकने को
ऐसे-ऐसे कपड़े पहने घूमते हैं होती हैं जिनमें जालियाँ। 











8 टिप्‍पणियां:

  1. unke aane se pahle khil gayin daaliyaan ,
    vaah ,majaa aa gyaa ,vaise bhi mujhe aapki rachnaaen bahut pasand hain

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  2. वाह ! बहुत सुन्दर रचना है ,,,लाजवाब ...एकदम गाने लायक रचना...... बहुत खूब ...शब्दों के इस हसीं सफ़र में आज से हम भी आपके साथ है ..इस उम्मीद से के शायद सफ़र दोनों के लिए कुछ आसान हो ...चलो तो फिर साथ चलते है //

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  3. हुस्न भी बेकाबू हो रहा आजकल बाहर झाँकने को
    ऐसे-ऐसे कपड़े पहनता है जिनमें होती हैं जालियाँ।
    ये बढ़िया रहा । बहुत खूब।

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  4. वाह प्रेम जी वाह...लाजवाब...मस्त लिखा है...
    नीरज

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  5. वाह प्रेम जी वाह...लाजवाब...मस्त लिखा है...
    नीरज

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  6. बदनामी में भी उनको अपना नाम होता हुआ दिखे
    बुरा नहीं लगता बिल्कुल अगर देता कोई गालियाँ। ..

    Bhai kya baat hai Prem ji ... lajawaab ...

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