शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

पाकर मन का मोहना


पा कर मन का मोहना कैसे हो खुदको रोकना
कौन सोच में डूबे तुम प्यार में खुदको झोकना

जब से देखा है उसको होश नहीं है अब मुझको
सच कहूँ ऐसे में मुझे भाये न किसी का टोकना। 

ख़ुद में ही मैं लगी डूबने ख़ुदको ही मैं लगी ढूँढने
डूबी गयी गहरी प्यार में भाये न किसी से बोलना।

उसकी शरण में जब से गई उसकी हो के रह गई
भाने लगा अब तो मन को साथ में उसके डोलना।

12 टिप्‍पणियां:

  1. "पा कर मन का मोहन
    कैसे हो खुदको रोकना
    कौन सोच में डूबा रे मन
    प्यार में खुदको झोकना।"

    बढ़िया रचना है जी।
    बधाई!

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  2. बहुत ही सुन्‍दर अभिवयक्ति ।

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  3. कौन सोच में डूबा रे मन
    प्यार में खुदको झोकना।
    सुन्दर अभिव्यक्ति
    सपर्पण का चरम

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  4. प्रेम भाव से परिपूर्ण बहुत सुन्दर रचना.

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  5. उसकी शरण जब से गई हूँ
    उसी की हो के मैं रह गई हूँ
    भाने लगा अब तो मन को
    साथ लेकर उसको डोलना।


    सुन्‍दर अभिवयक्ति ....।

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  6. बहुत सुंदर भाव और अब्भिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये रचना दिल को छू गई!

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  7. आप सभी ब्लोगर मित्रों का मेरा हौसला बढाने के लिए दिल से धन्यबाद!!

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  8. उसकी शरण जब से गई हूँ
    उसी की हो के मैं रह गई हूँ
    भाने लगा अब तो मन को
    साथ लेकर उसको डोलना।
    wah prem
    wah adhbhut prem

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