सोमवार, 31 अगस्त 2009

प्यार के समंदर उनमें सूख गए हैं


प्यार के समंदर उनमें सूख गए हैं।
या फ़िर वो मुझसे अब ऊब गए हैं॥

क्या सोचा था और क्या हो गया
लगता फैसला करके चूक गए हैं।

और कहीं दिल भी तो नहीं लगता
उनकी खातिर तन मन टूट गए हैं।

अब क्या प्यार नसीब होगा उनका
यह सोच के ग़मों में हम डूब गए हैं।

कुछ भी कहना अब मुमकिन नहीं
या तो हम लुटे हैं या वो लूट गए हैं।

13 टिप्‍पणियां:

  1. Pyar me aise samay aate rahate hai jab aisa ehsaas umdata hai..

    aapne bahut sundar varnan kiya hai pyar ki sundar aur sachchi abhiyakti..

    bahut bahut badhayi...

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  2. कुछ भी कहना अब मुमकिन नहीं
    या तो हम लुटे हैं या वो लूट गए हैं।
    सही है लुटे को क्या फर्क पडता है.
    बेहतरीन

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  3. वाह-वा, बहुत सुन्दर सृजन!

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  4. बहुत ख़ूब ग़ज़ल................
    हर बार की तरह
    वाह !
    क्या शे'र है
    और कहीं दिल भी तो नहीं लगता
    उनकी खातिर तन मन टूट गए हैं।
    ___बधाई !

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  5. कुछ भी कहना अब मुमकिन नहीं
    या तो हम लुटे हैं या वो लूट गए हैं।

    वाह..वाह...शर्मा जी!
    जिन्दाबाद!

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  6. प्यार के समंदर उनमें सूख गए हैं।
    या फ़िर वो मुझसे अब ऊब गए हैं

    BAHOOT KHOOB LIKHA HAI .... LAJAWAB

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  7. वाह वाह क्या बात है ! बहुत अच्छा लगा पढ़कर !

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  8. Kya socha tha aur ye kya ho gaya
    lagata faisala kar ke chook gaye hain

    wah! aksar yahee lagata hai.

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  9. कुछ भी कहना अब मुमकिन नहीं
    या तो हम लुटे हैं या वो लूट गए हैं।
    बहुत खूब...

    हम भी बहुत लुटे हैं...
    - सुलभ सतरंगी (यादों का इन्द्रजाल..)

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