शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

मुझे चढ़ गयो प्यार का बुखार


मुझे चढ़ गयो प्यार का बुखार,
उतारो  करो जल्दी बलमा
देखो अब और न करो बेकरार,
उतारो करो जल्दी बलमा।

हीर   के राँझे   को लाओ
लैला के  मजनूँ को  लाओ
जाओ जाओ जल्दी जाओ
अब न बिल्कुल देर लगाओ
देखो  देर न  करो सरकार,
उतारो   करो जल्दी बलमा।

तड़प तड़प के मरि न जाऊं
ऐसे  में कुछ  करि न जाऊं
किसी  तरह में चैन न पाऊँ
कहाँ तक मैं ख़ुदको तडपाऊँ 
यूँ  ही खड़े  न रहो लाचार,
उतारो   करो जल्दी  बलमा।

तन-मन मेरा जलने लगा है
मति मेरी  यह हरने लगा है
सोच-सोच कर डरने लगा है
अपने आप ही मरने लगा है
मेरा जीना ही हुआ है दुश्वार 
उतारो   करो जल्दी बलमा।


9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बधाई भइया।
    बहुत ही बढ़िया लिख रहे हो।

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  2. इस बुखार की दवा तो जल्दी ही होनी चाहिए
    वाह !
    उम्दा रचना !

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  3. वाह प्रेम जी
    बहुत खूब 'प्यार का बुखार'
    इतनी भी जल्दी क्या है इस बुखार को उतारने की!

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  4. आप सभी ब्लोगर मित्रों का मेरा हौसला बढाने के लिए दिल से धन्यबाद!!

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  5. JORDAAR GET HAI PREM JI ..... PYAAR MEIN TO SAB KUCH HOT HAI . BUKHAAR KI KYA BAAT .......

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