रविवार, 2 अगस्त 2009

दिल जल रहा मगर धुआं नहीं यारो


दिल जल रहा मगर धुआं नहीं यारो।
दिल से बना कोई अपना नहीं यारो।

अकेला हूँ अकेला ही सही मैं फ़िर भी
जी लूँगा गर कोई महरबाँ नहीं यारो।

लुटने को लुट रहे हैं बहुत दुनिया में
पर मुझसा लुटा कोई यहाँ नहीं यारो।

सकूँ की तलाश में भटका हूँ उमर भर
जहाँ पे ढूँढा वहाँ पे मिला नहीं यारो।

आरजू थी कि कोई हमसफ़र मिलता
भटकता रहा मैं कहाँ कहाँ नहीं यारो।

11 टिप्‍पणियां:

  1. सकूँ की तलाश में भटका हूँ उमर भर
    जहाँ पे ढूँढा वहाँ पे मिला नहीं यारो।
    ==
    मचलने लगा मेरे भी दिल मे यादो का सिलसिला यारो
    ===
    बहुत सुन्दर लिखा है

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  2. दिल जलने पर धुआँ खोजते यही प्रेम परिणाम।
    मिल जाये गर हमसफर मिल जाता अंजाम।।

    बहुत खूब प्रेम भाई।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  3. दोस्ती का जज़्बा सलामत रहे।
    मित्रता दिवस पर शुभकामनाएँ।

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  4. आरजू थी कि कोई हमसफ़र मिलता
    भटकता रहा मैं कहाँ कहाँ नहीं यारो।
    बहुत खूब ।

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  5. सकूँ की तलाश में भटका हूँ उमर भर
    जहाँ पे ढूँढा वहाँ पे मिला नहीं यारो।
    बेहतरीन अभिव्यक्ति बधाई

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  6. bahut khoob !
    लुटने को लुट रहे हैं बहुत दुनिया में
    पर मुझसा लुटा कोई यहाँ नहीं यारो।

    shabdon ke saath achhi kaari9gari ka udaahrana
    badhaai !

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  7. waah........aaj to bahut dardbhari nazm likh di ...........har pankti dil ko choo gayi.

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  8. एक बार फिर बेहतरीन शेरों से सजी उम्दा ग़ज़ल.
    हार्दिक बधाई.

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  9. 'अकेला हूँ अकेला ही सही मैं फ़िर भी
    जी लूँगा गर कोई महरबाँ नहीं यारो।'
    - चरैवेति चरैवेति.

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  10. आप सभी ब्लोगर मित्रों का मेरा हौसला बढाने के लिए दिल से धन्यबाद!!

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