बुधवार, 15 जुलाई 2009

मैं क्या बताऊं! तुम्हें दुःख अपना गुइयां।


क्या मैं बताऊं तुम्हें दुःख अपनों गुइयां।
मिलत जुलत नाहीं हैं मुझसे मेरे सइयां॥

सब सखियाँ मेरी मज़ा उडावे
सइयां उनके उन्हें गोद में बिठावे
पर
 मुझको नहीं है कहीं कोई ठैयां।

सैयां हैं मेंरे अजीब तरह के
रूठे रहत जाने कौन वजह से
कब हूँ न डालें बहियों में बहियां।

तुम्हारे दिन अच्छे कटत हैं सहेली
पर मैं तो रही हूँ घुट घुटके अकेली
दुःख के सिवा न मिली सुख की छैयां।



13 टिप्‍पणियां:

  1. सैयां मेरे हैं बड़े अजीब तरह के
    रूठे रहते वो जाने कौन वजह से
    कभी न डालें वो मेरी बहियों में बहियां ।
    ...Dil ko chhu gai ye panktiyan..behatrin !!

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  2. सब सखियाँ तो मेरी मज़ा उडावे
    सइयां उनके उन्हें गोद में बिठावे
    पर हाय! मुझको नहीं है कहीं कोई ठैयां।
    ====
    वाह क्या अन्दाज़ है बयाँ करने का
    बहुत खूब

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  3. तुम्हारे दिन अच्छे कटत हैं सहेली
    पर मैं तो रही हूँ घुट घुटके अकेली
    दुःख के सिवा न मिली सुख की कभी छैयां।

    बहुत बढ़िया।
    बधाई!

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  4. तुम्हारे दिन अच्छे कटत हैं सहेली
    पर मैं तो रही हूँ घुट घुटके अकेली

    वाह क्या खूब अन्दाज़ है ................ लाजवाब

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  5. पिया के अनदेखी का बडा सुंदर सरल चित्रण किया है आपने ।

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