गुरुवार, 18 जून 2009

इंसानियत का फ़र्ज़ निभाते चलो


इंसानियत का फ़र्ज़ निभाते चलो।
        भटके हुओं को राह दिखाते चलो॥ 

धन दौलत कौन साथ लेकर गया
         ज्यादा हो गरीबों को उठाते चलो॥ 


दुबारा जीवन तो अब मिलना नहीं
        हो सके तो प्यारे मित्र बनाते चलो॥ 


रोते को हँसाना पुण्य से कम नहीं
         ऐसा पुण्य 
दिन-रात कमाते चलो॥ 


17 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर वचनों से सजी-धजी ग़ज़ल बहुत ख़ूबसूरत है

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  2. रोते को हँसाना पुण्य से कम नहीं
    ऐसा पुण्य जीवन में कमाते चलो।


    जनाब इतने अच्छे शेर लिखे हैं आपने की मन से वाह वाह निकलती है......

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  3. बहुत ख़ूबसूरत, रोचक और शानदार रचना लिखने के लिए ढेर सारी बधाइयाँ! आपकी हर एक कविता प्रशंग्सनीय है!

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  4. saral magar bahut achchhe shabdon me nek salah achchhi lagi

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  5. प्रेम जी,

    सादगी भरे ऊँचे ख्यालों से सज्जित रचना मन लुभा लेती है, पूरी नेकनियती से।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  6. सुन्दर सन्देश.
    बधाई.

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  7. chalo aaj rote hue kisi bachche ko hasayaa jaaye....//kuchh isi tarah ka andaaz e bayaa thaa aapka/
    bahut khoob likhaa he janaab/

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  8. सुन्दर सकारत्मक सोच लिए सुन्दर अभिव्यक्ति !!!

    लेह यात्रा के लिए आप को भी बधाई !!!

    बहुत धन्यवाद !

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  9. रोते को हँसाना पुण्य से कम नहीं
    ऐसा पुण्य जीवन में कमाते चलो। ..
    bhut hee sundr lainen .

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