मंगलवार, 23 जून 2009

परदेश से जब आयेंगे मेरे साजना



परदेश से जब आयेंगे मेरे साजना
           रूठ जाऊंगी करूँगी उनसे बात ना
जो भी कहो,कहूँगी,दूर से ही कहो
          रखने  दूँगी बदन पर उन्हें हाथ ना॥

पूछूँगी क्यों इतना तरसाया मुझे
               काहे पागल सजना बनाया मुझे
तुमने तो मुझको भुला ही दिया
               काहे सताया इतना रुलाया मुझे
आदतें ये तुम्हारी आयी रास ना॥ 

हाय तुम क्या जानो कैसे रही हूँ
               जीवित भी हूँ कि या मर गयी हूँ
तुम बड़े बेरहम हो बेदर्दी पिया
                बस मैं ही यह जानूँ जैसे रही हूँ 
लगता आयी तुम्हें मेरी याद ना॥ 


12 टिप्‍पणियां:

  1. bhai yaad aati toh hogi unko magar ve bataate na honge

    achhi rachna !
    badhaai !

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  2. satana to mahabuba ka hak banataa hai our aap mana dena ........sundar

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  3. रूठने मनाने के अद्भुत भावः समेटे हुए है आपकी रचना...अति सुन्दर...वाह...
    नीरज

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  4. वाह क्या अंदाज़ है रूठे सजना को मनाने का............. लाजवाब लिखा है

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  5. सुन्दर गीत है प्रेम भाई।
    बरसात में बहुत मज़ा देगा।
    दुआ करो कि बारिश जल्दी से
    आ जाये।

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  6. आपने इतने सुन्दर ढंग से गीत लिखी है कि पढ़कर भी सुनने का सा भान हुआ....बहुत बहुत सुन्दर वाह !!!

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  7. Jab aise,aise diggaj, tippanee kar gaye, hame aur likhnaa naa aana!
    Manzoor, hai,un sabhheka kahanaa...!

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