सोमवार, 2 मार्च 2009

कभी दो कदम मेरे साथ चलते तो क्या बात थी


कभी दो कदम मेरे साथ 
        चलते तो क्या बात थी। 
कभी दिल से मुझसे बात 
        करते तो क्या बात थी॥ 

दिल की बात जानने की 
    कभी कोशिश न की तुमने
मेंरे हाथों में अपना हाथ 
          धरते तो क्या बात थी।

कभी तो मेंरे दिलवर तुमने 
   मुझे अपनापन दिया होता।
कभी तो मेरे दर्द को तुमने 
 ग़र अपना बना लिया होता।

एक बार भी न पूंछा तुमने 
  कैसा लगता मेरा साथ प्रिये
कभी पास आकर अपने  
     सीने से लगा लिया होता।

अपनेपन के लिए उमर भर 
        तरसी हूँ आस लिए हुए
जीती रही जिन्दगी अपना
   यह चेहरा उदास लिए हुए।

कुए के पास रह कर भी 
  प्यासी रही यह जिन्दगी मेरी
लगता यूँ ही मर जाऊंगी 
   तन-मन की प्यास लिए हुए।



7 टिप्‍पणियां:

  1. kya baat kahi hai ........aapne to poori zindagi ka dard utar diya hai .har sher lajawab hai.

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  2. बहुत खूब कहा है भाई...आनन्द आ गया.

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. दो कदम वो न चले,

    मैं ही घिसटती ही रही।

    वो तो पत्थर ही रहे,

    मैं ही चटकती ही रही।

    मेरे मन्दिर में भी,

    जज्बात सभी गुम-सुम हैं,

    उनको पाने के लिए,

    जग में भटकती ही रही।

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  5. कभी दो कदम मेरे साथ चलते तो क्या बात थी।

    कभी दिलसे मुझसे बात करते तो क्या बात थी।

    मेरे दिलकी बात जानने की तुमने कोशिश न की

    कभी हाथों में प्रिय हाथ धरते तो क्या बात थी......

    thi kahaan ji क्या बात...hai...!!

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  6. सुन्दर बात भावपूर्ण लफ्जों में कही आपने

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